लघुकथा

कहानी अपनी सी

एक बडे से परात मे रंग बिरंगे पानी मे अंगूठी डाल कर जिठानी बोली “देखो देवर जी हर हाल में जीतना है… बरना जिंदगी भर जोरू के गुलाम बनकर रहना होगा “ऐसा कहकर अंगूठी पानी मे छोड दी।

घूंघट मे दामिनी अपने आप में ही शरमायी जा रही थी……पानी के अन्दर दीपक (पति) का स्पर्श उसे रोमांचित कर रहा था।

दोनों अंगूठी ढूंढने में लगे थे, बारी दामिनी के पक्ष मे थी, सब चिढाने लगे “क्या देवर जी.. यहाँ तो जीत नही पा रहे लगता है बीबी के गुलाम हो गये हो अभी से, जानबूझकर तो नही हार रहे, सात बार मे चार बार जीतना जरूरी है…. अब जरा ध्यान से ” ऐसा कहकर अंगूठी पानी मे फिर छोड दी।

इस बार भी दामिनी के हाथ में थी अंगूठी…. घूंघट में हंसी आ रही थी दामिनी को….. पर ये क्या अचानक पानी के अन्दर दीपक ने दामिनी के हाथ को जोर से पकडा और अंगूठी पर जबरदस्ती कब्जा कर लिया…

सकपका गई दामिनी उसने पानी मे उसी पल अंगूठी छोड दी। तीसरी बार फिर बही किया गया किन्तु दामिनी ने इस बार कोई कोशिश नहीं की। अब हर बार जीत दीपक की हुई।

दामिनी की आंखों से आंसू टपक रहे थे,, वो समझ चुकी थी इसी अहंकार को जीना होगा,, उसके बाद फिर कभी न जीत सकी दामिनी,
अरे कहां खो गई दामिनी बहू की रस्म पूरी करवाओ।

आज बेटे बहू को उसी रस्म को करते देख उसे अपने दिन याद आ गये थे। “देख बहू सास की इज्जत का सबाल है हारना नही है”…… ऐसा कहकर अंगूठी पानी मे छोड दी गई।

इस तरह बहू की जीत से आज दामिनी जीत गई… और बेटा जो जानबूझकर हारा था माँ की खुशी को महसूस कर रहा था।

रजनी

रजनी बिलगैयाँ

शिक्षा : पोस्ट ग्रेजुएट कामर्स, गृहणी पति व्यवसायी है, तीन बेटियां एक बेटा, निवास : बीना, जिला सागर