नंदू का भोलापन ( एक काव्य मय कहानी )
नाम था नंदू ,काम था एक
सीधा सादा बड़ा ही नेक ।
पढ़ना लिखना , कुछ ना भावे
बुद्धू भोलाराम कहावे ।
माँ बोली , नंदू से एक दिन
पैसे भी दे दिये , उसे गिन ।
झटपट बनिए , के घर जाओ
किलो एक , मक्खन तुम लाओ ।
नंदू झट पहुंचा , बनिए घर
ले निकला मक्खन , सीर पर धर ।
तेज धुप ने , रंग दिखाया
पिघला मक्खन , सब बिखराया ।
सर से बहती , धार देख तब
माँ ने समझाया , सुन ले अब !
” चीज अगर तुम अब कुछ पाना
बांध जतन से घर ले आना ! “
” समझ गया माँ, तेरा कहना
फ़िक्र करो न , चैन से रहना ! “
कुछ दिन बीते , नंदू बोला
” माँ ला दे एक , उड़न खटोला ।
बैठ खटोले , पर जाऊँगा
नानीजी से , मिल आऊंगा ।
याद बहुत, नानी की आये
मामा भी , मुझको हैं भाये ! “
नंदू की सुन , ऐसी बातें
माँ बोली ,उसको समझाते !
” परियों की , बातें क्या जानूं ?
मैं दुखिया , बस इतना मानूं !
मजदूरों का , है यह टोला
कैसे ले दूँ , उड़न खटोला ?”
कपडे पहन, हाथ ले झोला
नंदू नानी , के घर डोला ।
नानी के घर , सुन्दर पिल्ला
देख के नंदू , बोला चिल्ला ।
” यह पिल्ला , मैं ले जाऊंगा
बिन इसके , कुछ ना खाऊंगा !”
चार दिवस , नानी घर रहकर
वह निकला , पिल्ले को लेकर ।
लेकर एक ,बड़ा सा झोला
पिल्ले को रख , घर को डोला ।
झोले में वह , नाजुक पिल्ला
गर्मी से परेशान हुआ ।
उछलकूद से उसकी नंदू ,
मन ही मन हैरान हुआ ।।
परेशान नंदू ने सोचा ,
इसको काबू करूँ कैसे ?
क्यूँ न वैसा ही कर डालूं ,
माँ ने बतलाया था जैसे ।।
लेकर पन्नी की थैली ,
पिल्ले को कस कर बांध दिया ।
देर नहीं करना यह सोच के ,
थैली पीठ पर लाद लिया ।।
घर पहुंचा नंदू खुश हो कर ,
माँ से यह बतलाया है ।
” माँ माँ देखो तो मैंने ,
नानी से क्या क्या पाया है ! “
रख झोला नंदू ने भू पर ,
झोले का मुंह खोला है ।
हलचल बिन पिल्ले को देख के,
अपनी माँ से बोला है ।।
“सुस्त पड़ा ‘ यह पिल्ला माँ
लगता है कुछ कुछ डरा हुआ ” ।
गुस्से से बिफरी माँ बोली ,
” डरा नहीं , है मरा हुआ ।।
नाजुक सुन्दर जीव को तुमने ,
क्यूँ कस कर के बाँधा है ? “
” ना कुछ बोलो माँ तुम मैंने ,
तेरे हुक्म को साधा है ।।
याद करो माँ उस दिन को ,
मक्खन जिस दिन मैं लाया था ।
बाँध कर लाना किसी चीज को ,
तुमने ही बतलाया था ।।
बातें सुन नंदू की माँ ने ,
अपना ही सीर पिट लिया ।
” क्या बोलूं सब गलती मेरी
मैंने भी यह सीख लिया ।।
सर का दर्जा सबसे ऊँचा
गर्दन पे यह सजती है ।
नक़ल करो पर जान लो यह भी
अकल नक़ल में लगती है “।।