कविता

कविता : उतरा चाँद

उतरा चाँद जमीं पे तो
तटिनी तब थम सी गई
शांत हुई मिल प्रिय से वो
गतियाँ सारी रुक सी गई।१
बोझिल थी नजरें मेरी
पलके क्यूँ थक सी गई
देख इस मंजर को फिर
नींद मेरी रुक सी गई।२
पेड़ों से छन छन कर
चांदनी फिर छिछली हुई
चांद की इन हरकतों से
प्रतिपल वो बिखरी रही।३
मिलन न देखा आज तक
बिखर अनूठी आभा गई
मिलन नूतन देखने को
सृष्टि भी सम्मिलित हुई।४
खिड़कियों से देख मैं
कैसे कहूं विचलित हुई
स्वर्गिक इस मंजर को मैं
बोल फिर सबसे गई।५
 —  सरिता खोवाला अग्रवाल