काव्यमय कथा-8 : झूठी प्रशंसा से बचो
रोटी एक मिली कौए को,
मन में बहुत-बहुत हर्षाया,
उसे देखकर एक लोमड़ी,
का भी मन था ललचाया.
”कौए भाई, तुम हो अच्छे,
कितना मीठा गाते हो!
अपनी मीठी तान सुना दो,
क्यों इतना शर्माते हो!”
इतना सुनकर खुश हो कौआ,
लगा छेड़ने जैसे तान,
रोटी गिरी चोंच से नीचे,
कौआ भूला अपना गान.
रोटी लेकर चली लोमड़ी,
कौआ तब पछताया था,
मीठी बातों में आने का,
उसने जो फल पाया था.