अनकहा
है बहुत कुछ अनकहा
तनाव सा व्याप्त है
चारों और
राशन से लेकर
चुल्हे तक का सफर
स्त्री के चिन्तित भावों से
बुझे मन की ठण्डी आग सा
है बहुत कुछ अनकहा
तनाव व्याप्त सा
पुरूष को खर्च की डायरी का बोझ
हर महिने बढ़ती
मुश्किलों सी खिंचती
रबड़ सी ख्वाहिशों का सोच
है बहुत सा अनकहा
तनाव है व्याप्त सा
टुटते टुकड़े सा अहसास
किस किस पर अविश्वास करें
घर की बेटी की बातों में
है बहुत सा अनकहा
तनाव है व्याप्त सा
माया बदल रही है रूप
बान्ध आखों पे पट्टी
अब तो खुद से खुद की
सीमा नहीं बनती
रे मन चल कहीं
जाकर जहां
कह सके अर्न्तमन की पीडा़
ऐसी कोई थाह हो
जो सह सके बहुत सा अनकहा तनाव
अल्पना हर्ष