ग़ज़ल – हौसला टूटा नहीं है
मानता हूँ शख़्स वो झूठा नहीं है
पर वो सच्चा है तो क्यों कहता नहीं है
है जहाँ धोखा तो होगा प्यार कैसे
है जहाँ पर प्यार तो धोखा नहीं है
तेरे जैसे हैं कई-ये कह दिया था
तेरे जैसा कोई पर दिखता नहीं है
ये तो सच है इसमें ग़लती है तुम्हारी
तुम हो अपने इसलिए शिकवा नहीं है
है अगर मंज़िल तो रस्ता भी मिलेगा
कोशिशों से क्या यहाँ मिलता नहीं है
दौड़ने वाला गिरा जब तो ये बोला-
पाँव टूटा, हौसला टूटा नहीं है
— डॉ. कमलेश द्विवेदी
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