गजल…..
तुम्हें प्यार ऐसे सजन कर रहीं हूँ ।
तेरे नाम का ही भजन कर रही हूँ ।
सताओ न ऐसे चले अब तो आओ ।
हरिक साँस अपनी हवन कर रही हूँ ।
तुम्हें याद कर मै फिरूँ छटपटाती ।
ये दर्दे जुदाई सहन कर रही हूँ ।
गये छोङ़ कर क्यूँ मुहब्बत हमारी ।
कमी क्या रही ये मनन कर रही हूँ ।
कभी राधिका तुम हमें थे बुलाते ।
उसी कृष्ण का मैं जहन कर रही हूँ ।
रहे “गूँज” दिल में तिरे बोल अबतक ।
उन्हीं से सलौने सपन कर रही हूँ ।
अगर तुम नही तो हमें अब न जीना ।
यही सोच खुद को दफन रही हूँ ।
…..अनहद गुंजन गीतिका “गूँज”