गीतिका/ग़ज़ल

गजल…..

 

तुम्हें प्यार ऐसे सजन कर रहीं हूँ ।
तेरे नाम का ही भजन कर रही हूँ ।

सताओ न ऐसे चले अब तो आओ ।
हरिक साँस अपनी हवन कर रही हूँ ।

तुम्हें याद कर मै फिरूँ छटपटाती ।
ये दर्दे जुदाई सहन कर रही हूँ ।

गये छोङ़ कर क्यूँ मुहब्बत हमारी ।
कमी क्या रही ये मनन कर रही हूँ ।

कभी राधिका तुम हमें थे बुलाते ।
उसी कृष्ण का मैं जहन कर रही हूँ ।

रहे “गूँज” दिल में तिरे बोल अबतक ।
उन्हीं से सलौने सपन कर रही हूँ ।

अगर तुम नही तो हमें अब न जीना ।
यही सोच खुद को दफन रही हूँ ।

…..अनहद गुंजन गीतिका “गूँज”

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*