मदिरा सवैया (वर्णिक छंद )
” मदिरा सवैया ” (वर्णिक छंद )
सात भगण+एक गुरु
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बाजत ढोलक और मृदंग, समीर सुवासित खूब बना
नाचत ग्वालिन ग्वाल कुमार, मिलाकर ताल हरेक जना
फागुन फाग उड़ा चहुँ ओर, उजास प्रवाह अवाधित था
पूरण चाँद अतीव मनोहर, सुन्दर सूरत दृश्य बना |
२.
मानस पूजन में फल फूलन की, दरकार कदापि नहीं
पूजन तू अपने मन में कर, पूजन तो कुछ और नहीं
सांस प्रसांस शरीर समेत, दिया उपहार हमें रब ने
भेंट नहीं, अनुराग यहाँ अति वांछित, दान अनीति नहीं |
कालीपद ‘प्रसाद’