“पेड़ लगाओ-धरा बचाओ”
जब गर्मी का मौसम आता,
सूरज तन-मन को झुलसाता।
तन से टप-टप बहे पसीना,
जीना दूभर होता जाता।
ऐसे मौसम में पेड़ों पर,
फल छा जाते हैं रंग-रंगीले।
उमस मिटाते हैं तन-मन की,
खाने में हैं बहुत रसीले।
ककड़ी-खीरा और खरबूजा,
प्यास बुझाता है तरबूजा।
जामुन पाचन करने वाली,
लीची मीठे रस का कूजा।
आड़ू और खुमानी भी तो,
सबके ही मन को भाते हैं।
आलूचा और काफल भी तो,
हमें बहुत ही ललचाते हैं।
कुसुम दहकते हैं बुराँश पर,
लगता मोहक यह नज़ारा।
इन फूलों के रस का शर्बत,
शीतल करता बदन हमारा।
आँगन और बगीचों में कुछ,
फल वाले बिरुए उपजाओ।
सुख से रहना अगर चाहते,
पेड़ लगाओ-धरा बचाओ।
—
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)