कविता

बलिदान

समझ नहीं हुं पा रहा
क्या लिखूं मैं आज ।
शहीदों की शहादत पे लिख दूं चंद नगमें
या सुनता रहुं बैठ के उनके बच्चों का साज ।
वे देश पे न्यौछावर हो गए
अंगारों पे हंसते हुए थे सो गए ।
जिस तिरंगे ने उनकी शान बढ़ाई थी
आज बच्चे उसीको रूसवा हैं कर रहें ।
आजाद देश रखने को
वे गोलियां झेलते रहें ।
पर देखो आज बच्चे उन्ही के
देश की एकता से खेल रहें ।
उनकी शहादत को हम
यूं ना आम होने देंगे ।
जब तक जिस्म में है जान
उन्हे ना हम मायूस होने देंगे ।
आखिर नाता है हमारा उनसे
तन से जो है प्राण का ।
देश कर्ज में डूबा है उनके
निस्वार्थ बलिदान का ।।

मुकेश सिंह
सिलापथार,असम ।
मो०: 09706838045

मुकेश सिंह

परिचय: अपनी पसंद को लेखनी बनाने वाले मुकेश सिंह असम के सिलापथार में बसे हुए हैंl आपका जन्म १९८८ में हुआ हैl शिक्षा स्नातक(राजनीति विज्ञान) है और अब तक विभिन्न राष्ट्रीय-प्रादेशिक पत्र-पत्रिकाओं में अस्सी से अधिक कविताएं व अनेक लेख प्रकाशित हुए हैंl तीन ई-बुक्स भी प्रकाशित हुई हैं। आप अलग-अलग मुद्दों पर कलम चलाते रहते हैंl