“दोहा”
मूर्ख दिवस की जय हो……..
समझदार भी जब कभी, बन जाते चालाक
कर बैठते मूर्खता , हो जाते हालाक॥-1
यूँ तो करते मूर्ख मजा, होकर के अपवाद
मस्ती में रहते सदा, सबको दें अवसाद।।-2
नाहक मूर्खा न बने, करें न भव बेकार
मजा मस्करी जोर से, बोलो जी केदार।।-3
मूर्ख बना के सोचना, अपना भी है खैर
चेहरा सुर्ख हुआ तो, अपना है या गैर।।-4
रहने दो बने बनाए, को समझाए कौन
गौतम गरज मूर्खता, कायम रहती मौन।।-5
मूर्ख सारे धन्य हैं, उनका शुभ दिन आज
कैसे कैसे बन गए, शर पर शोभे ताज।।-6
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी