कविता

“दोहा”

मूर्ख दिवस की जय हो……..

समझदार भी जब कभी, बन जाते चालाक

कर बैठते मूर्खता , हो जाते हालाक॥-1

यूँ तो करते मूर्ख मजा, होकर के अपवाद

मस्ती में रहते सदा, सबको दें अवसाद।।-2

नाहक मूर्खा न बने, करें न भव बेकार

मजा मस्करी जोर से, बोलो जी केदार।।-3

मूर्ख बना के सोचना, अपना भी है खैर

चेहरा सुर्ख हुआ तो, अपना है या गैर।।-4

रहने दो बने बनाए, को समझाए कौन

गौतम गरज मूर्खता, कायम रहती मौन।।-5

मूर्ख सारे धन्य हैं, उनका शुभ दिन आज

कैसे कैसे बन गए, शर पर शोभे ताज।।-6

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ