रगड़ा और झगड़ा
हमारे यहाँ देहातो में एक कहावत है कि झगड़ा ख़तम हो जाता है लेकिन रगड़ा ख़तम नहीं होता. और उस समय तो और ख़तम नहीं होता जब उससे कुछ अप्रत्याशित फायदा मिल जाय. जैसे जिन्ना को मिल गया. यद्यपि जिन्ना को पाकिस्तान बनने पर उतना विश्वास नहीं था जितना नेहरू और गांधी के महत्वाकांसा पर. नेहरू का किसी भी शर्त पर प्र म बनने की ललक और गाँधी की विश्व मानव कहलाने की चाहत ! उसके विश्वास का बहुत बड़ा संबल था. नेहरू गाँधी के इस कमजोरी को जिन्ना अच्छी तरह समझता था. बस ताज्जुब होता है की ७० साल बीत जाने के बाद भी न तो पाकिस्तान और न ही हमारे यहाँ के कुछ कट्टरपंथी, बाबर और जिन्ना के मानसिकता से उबार नहीं पा रहे है. तभी तो पकिस्तान कदम कदम पर उस भारत से उलझ रहा है जिसकी कोख से वह पैदा हुआ है और यहाँ का कट्टर पंथी उस बाबर के साथ खड़ा है जो भारत को लूट ही नहीं बल्कि यहाँ के धार्मिक स्थलों को ध्वंस किया, बहु बेटियो को बहुर्मत किया, हिन्दुओ का कत्लेआम किया.
चूँकि पिछले ६५ साल से बाबर प्रबृत्ति के लोगो को कही से कोई चैलेन्ज नहीं मिला इसलिए इनको मोदी सरकार जो कुछ भी कर रही है इन्हें आश्चर्यजनक लग रहा है, इन्हें लग रहा है की हिन्दुओ में इतनी हिम्मत कहा से आ गई है. यद्यपि ६०% हिन्दुओ में ही यह हिम्मत आई है, २०% मानसिंघी प्रबृत्ति के हिन्दू तो आज भी लालू मुलायम मायावती केजरीवाल राहुल का पोंछ पकड़कर इनके साथ है जिससे इनकी संख्या ४०% के आस पास है और मेरा स्पष्ट मानना है कि आज जो अल्पसंख्यक बर्ग के कुछ लोग दहलेंगे कर रहे है इन्ही २०% लोगो के बुते कर रहे है. मैं एक आधुनिक विचार वाले युवा मुस्लिम मित्र से पूछा की क्या आप लोग अन्तरात्मा से स्वीकार करते है कि वहां बाबरी मस्जिद था? उसका उत्तर भौचक करने वाला था, कहा की इसका उत्तर मुलायम से पूछिये. लेकिन इसे कबतक उलझाये रखोगे, मुलायम के सहारे कबतक रहोगे? वह बोला की २०१९ तक ! उसके बाद निश्चित तौर पर मंदिर या मस्जिद बन जायेगा.