रातें
कारी कारी,भारी रातें।
फिरती मारी मारी रातें।
पछुआ पवन जलाये तन को ।
झुलसाये,हर कली ,सुमन को ।
यह जलती सी जेठ दुपहरी ,
अस्त ,व्यस्त करती जीवन को ।
रात हवा ठप हो जाती है,
चिपचिप करें,उघारी रातें ।
कारी कारी …………………..
नदी,ताल,नाले उमड़ाये।
रात रात मेढक गोहराये ।
मेरा मन अब गीला घी है,
काले नीले बादल आये ।
छान पुरानी टप टप चूती,
कजरी भरी,मल्हारी रातें ।
कारी कारी ………………
हवा! तू जरा धीरे बह री !
काल संदेशा तू मत कह री !
शीतलहर के तेज थपेड़े,
क्या रोकेगी बूढ़ी कथरी ?
पूष माघ की कोहरे वाली,
निष्ठुर हाहाकारी रातें ।
कारी कारी …………….
बीती रातें करवट करवट ।
थी तेरी यादों की आहट ।
सूख गयी तुम बिन उर सरिता,
रिक्त हो गये नैनों के घट ।
मत पूछो! तारे गिन गिन के-
बीती मेरी सारी रातें ।
कारी कारी………………..
—————-डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी