“सबसे दुखी किसान”
याद हमेशा कीजिए, वीरों का बलिदान।
सीमाओं पर देश की, देते जान जवान।।
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उनकी शौर्य कहानियाँ, गाते धरती-व्योम।
आजादी के यजन में, किया जिन्होंने होम।।
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नेता मेरे देश के, ऐसे हैं मरदूद।
भाषण तक सीमित हुए, जिनके आज वजूद।।
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आज हमारे देश में, सबसे दुखी किसान।
फाँसी खा कर मर रहे, धरती के भगवान।।
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अमर शहीदों का जहाँ, होता हो अपमान।
सिर्फ कागजों में बना, अपना देश महान।।
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देश भक्ति का हो रहा, पग-पग पर अवसान।
भगत सिंह को आज भी, नहीं मिला वो मान।।
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गोरों का करते रहे, जो जमकर गुणगान।
शासन का उनको मिला, सत्ता-सूत्र-कमान।।
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कितने ही दल हैं यहाँ, परिवारों से युक्त।
होते हैं बारम्बार हैं, नेता वही नियुक्त।।
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लोकतान्त्रिक देश में, कहाँ रहा जनतन्त्र।
गलियारों में गूँजते, जाति-धर्म के मन्त्र।।
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राम और रहमान को, भुना रहे हैं लोग।
जनता दुष्परिणाम को, आज रही है भोग।।
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वर्तमान है लिख रहा, अब अपना इतिहास।
आम आज भी आम है, खास आज भी खास।।
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(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)