मुक्तक/दोहा

“सबसे दुखी किसान”

याद हमेशा कीजिए, वीरों का बलिदान।
सीमाओं पर देश की, देते जान जवान।।

उनकी शौर्य कहानियाँ, गाते धरती-व्योम।
आजादी के यजन में, किया जिन्होंने होम।।

नेता मेरे देश के, ऐसे हैं मरदूद।
भाषण तक सीमित हुए, जिनके आज वजूद।।

आज हमारे देश में, सबसे दुखी किसान।
फाँसी खा कर मर रहे, धरती के भगवान।।

अमर शहीदों का जहाँ, होता हो अपमान।
सिर्फ कागजों में बना, अपना देश महान।।

देश भक्ति का हो रहा, पग-पग पर अवसान।
भगत सिंह को आज भी, नहीं मिला वो मान।।

गोरों का करते रहे, जो जमकर गुणगान।
शासन का उनको मिला, सत्ता-सूत्र-कमान।।

कितने ही दल हैं यहाँ, परिवारों से युक्त।
होते हैं बारम्बार हैं, नेता वही नियुक्त।।

लोकतान्त्रिक देश में, कहाँ रहा जनतन्त्र।
गलियारों में गूँजते, जाति-धर्म के मन्त्र।।

राम और रहमान को, भुना रहे हैं लोग।
जनता दुष्परिणाम को, आज रही है भोग।।

वर्तमान है लिख रहा, अब अपना इतिहास।
आम आज भी आम है, खास आज भी खास।।

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है