ग़ज़ल
तेरी’ उल्फत नहीं’ नफ़रत ही’ सही
गर इनायत नहीं, जुल्मत ही’ सही |
चाहा’ था मैं तेरी संगत ही मिले
तेरी’ संगत नहीं, फुरकत ही’ सही |
इश्क तुमसे किया’, गफलत हो’ गई
छोड़ सब ख्याति, हकारत ही’ सही |
नाम तो सब हुआ’, बदनाम अभी
मेरी’ वहशत तेरी शोहरत ही’ सही | (गिरह)
पास आना कभी’ होगा नहीं’ किन्तु
मेहरबानी दे ज़ियारत ही’ सही |
जीस्त लम्बी नहीं छोटी है यहाँ
अब इसे मान शिकायत ही’ सही |
ये कहावत तो’ सही है जानम
गर असल है नहीं’ हसरत ही’ सही |
शब्दार्थ :
जुल्मत =अनुदार, अन्धेरा
फुरकत = विरह, वियोग
गफलत =भूल
हकारत=तिरस्कार ,अपमान
वहशत =भय ,पागलपन
ज़ियारत =दर्शन,दीदार
हसरत = अभिलाषा, इच्छा, कल्पना
कालीपद ‘प्रसाद’