गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

राहें जुदा हुई जो अब गुज़र हो कैसे।
ताउम्र रहे तड़पते अब बसर हो कैसे।

तुम बिन जीने की आदत सी हो गई है;
पाया तुम्हे सामने अब नज़र हो कैसे।

मुलाकातों का अब दौर न शुरु हो यूं;
यादों के पन्ने खोल के सहर हो कैसे।

रहनुमा न रहे बनके तुम जब तो कह दो;
ख्वाबों में भी तुम्हारा वो शहर हो कैसे।

“कामनी” यह ख्वाहिशें थमी रहने दो यूंही;
इन को संग लेकर कहो अब खबर हो कैसे।

कामनी गुप्ता***
जम्मू !

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |