गीतिका/ग़ज़ल

हक़ीक़त को छुपाने से हक़ीक़त कम नहीं होती

हक़ीक़त को छुपाने से हक़ीक़त कम नहीं होती
मुहब्बत की किसी भी हाल क़ीमत कम नहीं होती

सहर से शाम तक ये जूझते हैं ज़िंदगानी से
गरीबों की मगर फिर भी मुसीबत कम नहीं होती

पिसर कितना भी नालायक कोई चाहे निकल जाए
मगर माँ है कि जिसके दिल में चाहत कम नहीं होती

अलग है बात कि लौहे को लौहा काटता है पर
जमाने में कभी नफ़रत से नफ़रत कम नहीं होती

अगर किरदार रखना है सोने की तरह रक्खो
ये जितना भी पुराना हो कि क़ीमत कम नहीं होती

सियासत ने चली थी चाल दोनों ओर ऐसी कि
जमाने हो गए लेकिन अदावत कम नहीं होती

भले जीतने तरीकों से इन्हें समझाइए ‘माही’
ये बच्चे हैं कभी इनकी शिकायत कम नहीं होती

महेश कुमार कुलदीप ‘माही’
जयपुर / सूरत
+918511037804

महेश कुमार कुलदीप

स्नातकोत्तर शिक्षक-हिन्दी केन्द्रीय विद्यालय क्रमांक-3, ओ.एन.जी.सी., सूरत (गुजरात)-394518 निवासी-- अमरसर, जिला-जयपुर, राजस्थान-303601 फोन नंबर-8511037804