दोहे
दोहे
अपनी ही आलोचना, है मुक्ति प्राप्ति मार्ग
गलती देखे और का, उनमे अभाव त्याग |
अगर क्षमा ही श्रेष्ठ है, जिद्दी क्यों है संत
सभी लड़ाई व्यर्थ है, सबका सामान अंत |
मुस्लिम हो या हिन्दू हो, किसी की नहीं भूमि
देव अवतरण भूमि है, बनाओ न बध-भूमि |
सूद सहित है भोगना, है जो तेरा कर्म
जाँचा परखा जायगा, समझ ले कर्म –मर्म|
वाइज़ हो या साधु हो, रखे सभी यह याद
झगडा लाता नाश है, कौम होत बर्बाद |
कालीपद ‘प्रसाद’