दो मुक्तक
हर वक्त की लड़ाई अच्छी नहीं होती
कोई भी वक्त इंतज़ार में अच्छी नहीं होती
जब से हुई है मोहब्बत क्या बताऊँ
वीकेंड की भी छुटिटयां अब अच्छी नहीं लगती
टूटे हुए दिल से मैंने तुमको अपना बनाया है
तेरी हर एक मुस्कान पे अपनी जां को लुटाया है
तेरी मुस्कुराहट को मैं समझ नहीं पाया
हँसते हँसते तुमने मुझे पराया बनाया है