सामाजिक

लेख – प्रेम दो प्रेम लो

प्रेम एक अनूठा शब्द है । जिस शब्द का उच्चारण मात्र ही हृदय में एक मिठास छोड़ जाता है। उस शब्द की महिमा अवर्णनीय है । महान कवि कबीर ने तो खुले शब्दों में कह दिया है कि सिर्फ ढाई अक्षर प्रेम का जानने वाला ही ज्ञानी कहलाने का अधिकारी है।

प्रेम की व्याख्या अति व्यापक है इस व्याख्या में प्रेम का अर्थ किसी व्यक्ति विशेष से नहीं है अपितु इस व्याख्या में प्रेम का अर्थ संपूर्ण प्राणी जगत से है। व्यक्ति, परिवार, राज्य, देश, दुनिया सब इस प्रेम की परिधि में आते हैं । प्रत्येक मानव प्रेम का भूखा होता है और प्रेम न मिलने की दुहाई देता है। प्रेम कहीं से बरसता नहीं है। वह तो प्रत्येक मानव के हृदय में आसन जमाये बैठा है आवश्यकता है उस प्रेम को हृदय से बाहर निकालने की ।प्रेम का सौदा बड़ा सीधा होता है। जितना देते हैं उतना ही सिर्फ वापस मिलता है। इसलिए अगर हम अधिक देंगे तो वापस भी अधिक मात्रा में मिलेगा। किसी ने ठीक ही कहा है ” बोया पेड़ बबूल का तो आम कहाँ से खाये।”
हम जो बोते हैं उसी की फसल काटते हैं। अगर हम बैर की फसल बोयेगें तो बैर ही काटेगें और अगर प्रेम की फसल बोते हैं तो प्रेम ही काटेगें ।

प्रसिद्ध शायर इकबाल ने अपनी कलम से लिखा है ” मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना ” मजहब ऊपर से जितना कलहकारी लगता है, अंदर से उतना ही शांतिदायक है ।
हमें मजहब का सच्चा अर्थ जानना चाहिए ।हम सभी मनुष्य समान हैं प्रत्येक व्यक्ति में परमात्मा का निवास है । हमें दूसरे मजहब की अच्छाइयों को देखना चाहिए। इससे आपसी प्रेम बढ़ेगा और एकता की भावना मजबूत होगी ।आज भारत को इसकी परम आवश्यकता है ।

स्वदेश प्रेम मानव मात्र का एक स्वाभाविक गुण है। मनुष्य तो विचारवान और ज्ञानवान प्राणी है । छोटे छोटे पशु पक्षी भी अपने जन्म स्थान से अनंत स्नेह करते हैं । पक्षी दिन भर न जाने कहाँ कहाँ उड़ते फिरते हैं। परंतु संध्या होते ही वे दूर दूर दिशाओं के पंख फड़फड़ाते हुए अपने नीड़ों को लौट आते हैं। नगर से दूर निकल जाने वाली गाय भी शाम होते ही खूँटे को याद करके रंभाने लगती है। इसी प्रकार मनुष्य चाहे किसी भी कार्य विशेष से विदेश में रहता हो, परंतु उसके हृदय से जन्मभूमि की मधुर स्मृतियाँ कभी भी समाप्त नहीं होती हैं । हम जन्मभूमि से प्रेम करते हैं क्योंकि वह हमसे प्रेम करती है। हम उसकी धूल में खेल कूद कर लेट कर बड़े होते हैं। वह हमें रहने के लिए अपने कोमल अंक में आवास देती है। देश प्रेम पवित्र सलिला भागीरथी के समान है जिसमें स्नान करने से शरीर ही नहीं अपितु मनुष्य का मन और अंतरात्मा भी पवित्र हो जाती है । स्वदेश की रक्षा और उसकी उन्नति के लिए अपना तन मन धन देश के चरणों में समर्पित कर देना ही सच्चा देश प्रेम है ।

संसार के विभिन्न धर्मों के कर्मकांड या बाह्य विधि विधानों में भले ही भिन्नता हो, परंतु एक ऐसी बात है जिस पर सभी धर्म एक मत है और वह है प्रेम की भावना ।प्रेम का विरोध कोई भी धर्म ग्रंथ नहीं करता है। विश्व के सभी महापुरूषों के जीवन में इस गुण की अधिकता देखने को मिलती है। प्रेम की भावना व्यक्ति के संकुचित दृष्टिकोण को उदार बनाती है। प्रेम लोगों से कहता है ” जियो और जीने दो ।” भारतीय विचारकों ने उपनिषदों में यही मूलमंत्र मानव को दिया है – वसुधैव कुटुंबकम् ।

कुरान शरीफ़ में भी कहा गया है -” अपने पड़ोसी से प्रेम करो ।” बाइबिल में भी कहा गया है -“दूसरों से वैसा ही व्यवहार करो जैसा तुम चाहते हो ।”
प्रेम ही जीवन का सार
प्रेम बिना जीवन नि:सार ।
प्रेम जीवन का आधार है । प्रेम के बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है । आज दुनिया में विभिन्न समस्याओं का मूल कारण ही यह है कि मानव हृदय से प्रेम भावना लुप्त होती जा रही है। परिणाम स्वरूप वृक्षों की कटाई, खाद्य पदार्थों में मिलावट, आतंकवाद, हिंसा, पशु-पक्षियों के साथ दुर्व्यवहार, प्रदूषण आदि विभिन्न समस्याएं जन्म ले रही हैं । यहां तक की परिवारों का विघटन भी इसी कारण हो रहा है। आज प्रेम के स्थान पर ईर्ष्या और धन लोलुपता ने अपना आसन जमा लिया है
प्रेम एक बहुत ही कोमल भावना है । प्रेम में दरार आने पर भरना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है । इसी लिए कवि रहीम ने कहा है –
रहीमन धागा प्रेम का,
मत तोड़ो चटकाए ।
टूटे से फिर न जुरे,
जुरे तो गाँठ परि जाए ।
आज उपभोक्ता संस्कृति के परिणामस्वरूप भारत में भी तनाव, अशांति और हिंसा का वातावरण व्याप्त हो गया है । इसके कारण मनुष्य मशीन बनता चला जा रहा है। उसने अपनी ममता, कोमलता और संवेदन शक्ति को तो कुचला ही है, वह भीतर से बहुत तनावपूर्ण अशांत रहता है। भोग की अंधी दौड़ उसे कभी संतुष्ट नहीं रहने देती है। दूसरों को अधिक सुखी देख कर उसके खोखले अहं को धक्का लगता है। इस सब को दूर करने की सिर्फ एक ही दवा है प्रेम ।अगर जनमानस में प्रेम की भावना कूट-कूट कर भर दी जाए तो यह उपभोक्ता संस्कृति भी हमारे आड़े नहीं आ सकती है ।
हमें अपनी संस्कृति के मूल गुण – प्रेम, करूणा, समरसता आदि को पुनः जगाना होगा ।यदि हम आशावादी दृष्टिकोण बनाए रखें तो यह संभव है । महा कवि दिनकर के शब्दों में –
लोहे के पेड़ हरे होगें ,
तू गान प्रेम का गाता चल ।
नम होगी यह मिट्टी जरूर,
आसूँ के कण बरसाता चल ।
प्रेम में आदान-प्रदान की भावना महत्वपूर्ण होती है। प्रेम को हम जितना बाटेगें उतना ही प्राप्त होगा ।यह एक हाथ दो, एक हाथ लो वाला सौदा है । निष्कर्ष यह है –
प्रेम पाना है तो पहले प्रेम कर,
किनारे से कभी अंदाजे तूफां नहीं होता ।

— निशा नंदिनी गुप्ता
तिनसुकिया, असम

*डॉ. निशा नंदिनी भारतीय

13 सितंबर 1962 को रामपुर उत्तर प्रदेश जन्मी,डॉ.निशा गुप्ता (साहित्यिक नाम डॉ.निशा नंदिनी भारतीय)वरिष्ठ साहित्यकार हैं। माता-पिता स्वर्गीय बैजनाथ गुप्ता व राधा देवी गुप्ता। पति श्री लक्ष्मी प्रसाद गुप्ता। बेटा रोचक गुप्ता और जुड़वा बेटियां रुमिता गुप्ता, रुहिता गुप्ता हैं। आपने हिन्दी,सामाजशास्त्र,दर्शन शास्त्र तीन विषयों में स्नाकोत्तर तथा बी.एड के उपरांत संत कबीर पर शोधकार्य किया। आप 38 वर्षों से तिनसुकिया असम में समाज सेवा में कार्यरत हैं। असमिया भाषा के उत्तरोत्तर विकास के साथ-साथ आपने हिन्दी को भी प्रतिष्ठित किया। असमिया संस्कृति और असमिया भाषा से आपका गहरा लगाव है, वैसे तो आप लगभग पांच दर्जन पुस्तकों की प्रणेता हैं...लेकिन असम की संस्कृति पर लिखी दो पुस्तकें उन्हें बहुत प्रिय है। "भारत का गौरव असम" और "असम की गौरवमयी संस्कृति" 15 वर्ष की आयु से लेखन कार्य में लगी हैं। काव्य संग्रह,निबंध संग्रह,कहानी संग्रह, जीवनी संग्रह,बाल साहित्य,यात्रा वृत्तांत,उपन्यास आदि सभी विधाओं में पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। मुक्त-हृदय (बाल काव्य संग्रह) नया आकाश (लघुकथा संग्रह) दो पुस्तकों का संपादन भी किया है। लेखन के साथ-साथ नाटक मंचन, आलेखन कला, चित्रकला तथा हस्तशिल्प आदि में भी आपकी रुचि है। 30 वर्षों तक विभिन्न विद्यालयों व कॉलेज में अध्यापन कार्य किया है। वर्तमान में सलाहकार व काउंसलर है। देश-विदेश की लगभग छह दर्जन से अधिक प्रसिद्ध पत्र- पत्रिकाओं में लेख,कहानियाँ, कविताएं व निबंध आदि प्रकाशित हो चुके हैं। रामपुर उत्तर प्रदेश, डिब्रूगढ़ असम व दिल्ली आकाशवाणी से परिचर्चा कविता पाठ व वार्तालाप नाटक आदि का प्रसारण हो चुका है। दिल्ली दूरदर्शन से साहित्यिक साक्षात्कार।आप 13 देशों की साहित्यिक यात्रा कर चुकी हैं। संत गाडगे बाबा अमरावती विश्व विद्यालय के(प्रथम वर्ष) में अनिवार्य हिन्दी के लिए स्वीकृत पाठ्य पुस्तक "गुंजन" में "प्रयत्न" नामक कविता संकलित की गई है। "शिशु गीत" पुस्तक का तिनसुकिया, असम के विभिन्न विद्यालयों में पठन-पाठन हो रहा है। बाल उपन्यास-"जादूगरनी हलकारा" का असमिया में अनुवाद हो चुका है। "स्वामी रामानंद तीर्थ मराठवाड़ा विश्व विद्यालय नांदेड़" में (बी.कॉम, बी.ए,बी.एस.सी (द्वितीय वर्ष) स्वीकृत पुस्तक "गद्य तरंग" में "वीरांगना कनकलता बरुआ" का जीवनी कृत लेख संकलित किया गया है। अपने 2020 में सबसे अधिक 860 सामाजिक कविताएं लिखने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। जिसके लिए प्रकृति फाउंडेशन द्वारा सम्मानित किया गया। 2021 में पॉलीथिन से गमले बनाकर पौधे लगाने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। 2022 सबसे लम्बी कविता "देखो सूरज खड़ा हुआ" इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। वर्तमान में आप "इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल न्यास" की मार्ग दर्शक, "शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास" की कार्यकर्ता, विवेकानंद केंद्र कन्या कुमारी की कार्यकर्ता, अहिंसा यात्रा की सूत्रधार, हार्ट केयर सोसायटी की सदस्य, नमो मंत्र फाउंडेशन की असम प्रदेश की कनवेनर, रामायण रिसर्च काउंसिल की राष्ट्रीय संयोजक हैं। आपको "मानव संसाधन मंत्रालय" की ओर से "माननीय शिक्षा मंत्री स्मृति इरानी जी" द्वारा शिक्षण के क्षेत्र में प्रोत्साहन प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया जा चुका है। विक्रमशिला विश्व विद्यालय द्वारा "विद्या वाचस्पति" की उपाधि से सम्मानित किया गया। वैश्विक साहित्यिक व सांस्कृतिक महोत्सव इंडोनेशिया व मलेशिया में छत्तीसगढ़ द्वारा- साहित्य वैभव सम्मान, थाईलैंड के क्राबी महोत्सव में साहित्य वैभव सम्मान, हिन्दी साहित्य सम्मेलन असम द्वारा रजत जयंती के अवसर पर साहित्यकार सम्मान,भारत सरकार आकाशवाणी सर्वभाषा कवि सम्मेलन में मध्य प्रदेश द्वारा साहित्यकार सम्मान प्राप्त हुआ तथा वल्ड बुक रिकार्ड में दर्ज किया गया। बाल्यकाल से ही आपकी साहित्य में विशेष रुचि रही है...उसी के परिणाम स्वरूप आज देश विदेश के सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उन्हें पढ़ा जा सकता है...इसके साथ ही देश विदेश के लगभग पांच दर्जन सम्मानों से सम्मानित हैं। आपके जीवन का उद्देश्य सकारात्मक सोच द्वारा सच्चे हृदय से अपने देश की सेवा करना और कफन के रूप में तिरंगा प्राप्त करना है। वर्तमान पता/ स्थाई पता-------- निशा नंदिनी भारतीय आर.के.विला बाँसबाड़ी, हिजीगुड़ी, गली- ज्ञानपीठ स्कूल तिनसुकिया, असम 786192 [email protected]