गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल – चांद जमीं पर

चेहरे से हटा ले जुल्फों को
जरा चांद जमीं पर आने दो
मैं जुगनू बन कर चमकूंगा
जरा चांद जमीं पर आने दो
ये रात सुहानी मस्त मस्त
जरा चांद जमीं पर आने दो
मैं झूम झूम कर गाऊंगा
जरा चांद जमीं पर आने दो
तेरी बाहों में मैं सो जाऊं
जरा चांद जमीं पर आने दो
तेरे ख्वाबों में मैं खो जाऊं
जरा चांद जमीं पर आने दो
तारे शरमा कर छुप जाये
जरा चांद जमीं पर आने दो
रुख का नूर बिखर जाये
जरा चांद जमीं पर आने दो
मेरा मन तन्हा ये खिल जाये
जरा चांद जमीं पर आने दो
नन्द सारस्वत

नन्द सारस्वत

नन्द सारस्वत 27/7/1961 स्नातकोत्तर ( व्यवसाय प्रबंधन ) राजस्थान विश्वलविध्यालय पता- # 1 गोदावरी विला मिनाक्षीनगर बैंगलुरु-79 व्हाटस एप्प-8880602860 email [email protected]