वाणी वंदना
शारदे! माँ शारदे! माँ शारदे! माँ शारदे !
जगतजननी कवि सुवन को कल्पना संसार दे !
अखिल जग का तम मिटा दे !
सुप्त प्राणों को जगा दे !
जिंदगी के पथ सुगम कर !
ज्ञान के दीपक जला दे !
ज्ञान के वटवृक्ष उपजें,मूल को आधार दे !
शारदे! …………………………………….
देख ! जगती रो रही है ।
रक्तरंजित हो रही है ।
खून की छींटे वसन पर-
आँसुओं से धो रही है ।
चण्डिका बन पापियों को अंबिके संहार दे !
शारदे ! ……………………..
युद्ध का मैं गान लिख दूँ ।
क्रांति का उन्वान लिख दूँ।
जब गरल उपजे धरा पर,
शंभु का विषपान लिख दूँ ।
काट दूँ अवसाद सारे,लेखनी को धार दे !
शारदे! ………………………..
दर्द के घन विरल कर दे !
क्षीण मन को सबल कर दे !
नव “दिवाकर” ज्ञान का हो,
हर किरण को नवल कर दे !
कलुष तम सबके हृदय के वाग्देवी मार दे !
शारदे! ………………………………
-डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी