गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

दिल अदद पत्थर हुआ यूं चोट खाई ज़िंदगी ।
आंख ही बहती रही बह ना सकी ये ज़िंदगी ।।
वो खफ़ा मुझसे है या फिर है ख़फ़ा ये जिंदगी
बात कुछ भी हो मग़र नही ज़िंदगी सी ज़िंदगी।।
रोशनी घुलता अंधेरा गर्दिश में लिपटी ज़िंदगी।
बस धुआं ही औ धुआं कुछ यूं जली ये जिंदगी ।।
उफ़ नही कोई न कोई है शिकन उस पे नवाज़ ।
हर कमतरी ली ढाँप कि उससे बड़ी ये ज़िंदगी ।।
दर्द सीने में उठे या फिर जीने में कोई ग़म नही ।
एक मुद्दत से यूँही मिली भेंटी थी हर सूं ज़िंदगी ।।
देखना उस पार शायद फिर से मिले कोई ज़िंदगी ।
नींद आंखों से ख़ला और ख्वाब एक ये जिंदगी ।।
प्रियंवदा अवस्थी 

प्रियंवदा अवस्थी

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से साहित्य विषय में स्नातक, सामान्य गृहणी, निवास किदवई नगर कानपुर उत्तर प्रदेश ,पठन तथा लेखन में युवाकाल से ही रूचि , कई समाचार पत्र तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित , श्रृंगार रस रुचिकर विधा ,तुकांत अतुकांत काव्य, गीत ग़ज़ल लेख कहानी लिखना शौक है। जीवन दर्शन तथा प्रकृति प्रिय विषय । स्वयं का काव्य संग्रह रत्नाकर प्रकाशन बेदौली इलाहाबाद से 2014 में प्रकाशित ।