दोहा,
मातु शीतला अब बहे, शीतल नीम बयार
निर्मल हो आबो हवा, मिटे मलीन विचार।।
डोला मैया आप का, बगिया का रखवार
माली हूँ अर्पण करूँ, नीम पुष्प जलधार।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
मातु शीतला अब बहे, शीतल नीम बयार
निर्मल हो आबो हवा, मिटे मलीन विचार।।
डोला मैया आप का, बगिया का रखवार
माली हूँ अर्पण करूँ, नीम पुष्प जलधार।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी