गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल – छुप-छुप कर हमें यूं न सताया करो

छुप-छुप कर हमें यूं न सताया करो
बात दिल की मेरे जान जाया करो

दूर बैठकर तकते हो इस कदर
सदके में मेरी नजरें झुकाया करो

इकरार करने का अंदाज निराला है
भरी महफिल में सहम जाया करो

जमाना शातिर है नहीं इसको गुमां
बेझिझक मिलने को न आया करो

हसीं ख्वाब सजाये हैं पलकों ने तेरी
मेरी ख्वाहिशों पर रहम खाया करो

रंगीन शाम का लुफ्त उठा लो मगर
जाम हाथों का मेरी पी जाया करो

प्रीती श्रीवास्तव

पता- 15a राधापुरम् गूबा गार्डन कल्याणपुर कानपुर