अमन के फूल
लो फिर मिटा दे भेदभाव
खिला दे अमन के फूल फिर
बदल रही है वक्त की नजाकत
लो मिला ले प्रेम की चाहतें फिर
न हो अब रंग रूप का भेद हम में
मिल आये गले एक बार और फिर
घिर न आये माहौल फिर नफरतों का
न फिरने पायें अरमानों पे धूल फिर
आओ फिर ऐक बार मिल ले गले
फिजा़ओं में खिलें अमन के फूल फिर।
अल्पना हर्ष,बीकानेर