“आँसू औ’ मुस्कान”
जिसमें हों व्यञ्जन भरे, वही व्यञ्जना मीत।
बन जाते हैं इन्हीं से, जीवन के कुछ गीत।।
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दिल से निकले भाव ही, देते हैं उल्लास।
बेमन से उपजा स्रजन, बन जाता उपहास।।
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सावन में अच्छे लगें, छींटे औ’ बौछार।
लेकिन सर्दी में यही, देते कष्ट अपार।।
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साथ-साथ चलते सदा, आँसू औ’ मुस्कान।
दोनों ही हालात में, उर से उपजे गान।।
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कविवर ऐसा कुछ रचो, जिसमें हो लालित्य।।
जिससे हित हो जगत का, वो ही है साहित्य।
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छोटी सी है ज़िन्दग़ी, काहे का अभिमान।
तन नश्वर है सभी का, होना है अवसान।।
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सुख-दुख दोनों में सदा, धीरज से लो काम।
धूप “रूप” की जब ढले, तब हो जाती शाम।।
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)