आग का दरिया सुने ज़माना हो गया
उजड़ी नींदों का सफर भी तब सुहाना हो गया
यूँ गुज़रा छूकर वो दिल तो बस दीवाना हो गया
करवटों पे लिख रहा था जब दर्द कुछ इबारतें
सिलवटों से मन की खेल वो परवाना हो गया ।।
ख्वाब थे खामोश जागे सोये मचल कर हँस पड़े
एक अदद इनकार सौ बातों का बहाना हो गया
इश्क का अंधड़ छिपे कब साँस हो या फिर हवा
नज़रें मिली औ इश्क छलकता पैमाना हो गया ।।
मुफ़्त की बदनामियाँ ले है नाचता तब भी ये दिल
आग का दरिया सुनते मुद्दत ए ज़माना हो गया ।।
प्रियंवदा अवस्थी