“गरीबी”
गरीबी
एक शूल की तरह
पली बढ़ी
चढ़ती गई व प्राण हरती गई
उतरी तो धमनियों से रक्त निचोड़ गई
जब सुस्त हुई तो
तगड़े व स्वस्थ नौजवान को भी पस्त कर गई
गरीबी गरीब कर गई॥
गरीबी
लता की तरह बढ़ी
उपजाऊँ जमीन पर उगी
पर किसी दरख्त तक न पहुँच पाई
जमीन पर फैली
उसे हरी करती रही
पैरों की ठोकर खा-खाकर
कुरमुरा कर जीती रही॥
वक्त बेवक्त की सेल्फी बन गई
गरीबी गरीब कर गई॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी