माँ
माँ ,माँ क्या होती है ?क्या कोई बता सकता है ?नही ,क्योंकि जिनको माँ मिल जाती है वो इसका अर्थ भी नही समझते । माँ वो है , जो बच्चे के रोने से पहले उसकी भूख समझ लेती है । माँ वो है , जो खुद भीगने पर भी बच्चे को सूखे में सुलाती है ।माँ जिसकी कल्पना भी एक सुख की अनुभूति पैदा कर देती है । माँ जिसके न होने से भरा पूरा समृद्ध परिवार होने के बाद भी एक बच्चा अनाथ कहलाता है । 5o लोगों के होते हुए भी प्यार के लिए उम्र भर तरसता है।
वो क्या समझेंगे एक माँ की ममता को , माँ के न होने के अहसास को , जिन्होंने अपने बच्चों को अपने जीते जी बेसहारा छोड़ दिया हो । क्या एक पिता का फर्ज नहीं बनता कि माँ की गैर मौजूदगी में वो बच्चे को माँ बाप दोनों का प्यार दे ?
क्या पत्नी के देहांत के बाद बच्चों के प्रति उनकी जवाबदेही खत्म हो जाती है ? क्या एक माँ अपने पति के देहांत के बाद बच्चे का त्याग कर सकती है ? नहीं ,क्योंकि प्रकृति ने ये ममता शायद एक नारी को ही प्रदान की है । मैं ये नही कहती कि दुनिया के सभी पिता एक से होते हैं और पत्नी के देहांत के बाद बच्चों को छोड़कर दूसरी शादी करके मौज करते हैं लेकिन समाज के बहकावे या अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए बच्चों की बलि देना कहाँ तक उचित है ? कितनी स्त्रियां हैं समाज मे जो पहली पत्नी के बच्चे को स्वीकार करती हैं । क्या एक पिता का फर्ज नही बनता कि वो अपने कर्तव्य का पालन करे । शायद ये जिम्मेदारी भी सिर्फ एक माँ की ही होती है कि पति के देहांत के बाद वो बच्चों की देखभाल के लिए अपना सारा जीवन समर्पित कर दे और समाज मे एक मानक बनकर रहे ,क्योंकि वो एक औरत है ,एक माँ है । एक माँ अपने बच्चों के लिए अपना जीवन कुर्बान करने के बाद भी अबला क्यों मानी जाती है ?क्यों ? क्या आप बता सकते हैं ?
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ