एक गीत
ऐ! रुको! रुको! मेरे अतीत,
मत वर्तमान से खेल करो !
गाया तुमको मैने अतीत !
जैसे कि कोई शोक गीत ।
तुम वर्तमान से दूर रहो,
मत करो मेरे उर को सभीत।
तुम मिट्टी थे ,ये सोना है ,
मत कोई उल्टा मेल करो !
ऐ! रुको!………………….
तोड़ा था मुझको जार जार,
तुम छोड़ गये थे अंधकार।
तब भी मैं खुश हूँ सच मानो,
फिर से मत छेड़ो नयी रार।
मैं पुष्पित तरु ,मेरे तन पर-
मत काँटो वाली बेल करो !
ऐ रुको ! ……………………..
— डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी