शुभ स्वागतम् प्रधानमंत्री जी!
आइए प्रधानमंत्री जी! आपका स्वागत है। शुभस्वागतम्!! आज आपका आगमन मेरे शहर की सड़कों का चित्र और चरित्र बदलने जा रहा है। किसी कुरूप गणिका की तरह उत्छृंखल- सी दिखनेवाली ये सड़कें, आज किसी पतिव्रता की भाँति चमक रही हैं। कल तक इनके गड्ढे न जाने कितनी आत्माओं को उनके से अलग कर, परमात्मा से मिलन का माध्यम बन गए थे। आज आपका आगमन आत्मा, परमात्मा-मिलन में बाधक बन जाएगा। एक ओर तो आप ‘सबका साथ-सबका विकास’ की बात करते हैं, दूसरी ओर आपसे हमारा इतना सुख भी नहीं देखा जा रहा?हम कहाँ जाकर मरेंगे? मैं अकसर एक सुना लेकर इस सड़क से गुज़रता कि कभी, किसी दिन इसके गड्ढे मेरी क्षुद्र आत्मा को परमात्मा से मिलन देगी। पुलिस से नज़र बताकर ट्रॉफिक सिग्नल तोड़कर धड़धड़ाता हुआ बाईक से परमात्मा की ओर भागता कि एक दिन जब ये नश्वर शरीर इन गड्ढों में समा जाएगा को नगर पालिका इस अदने-से व्यंग्यकार की स्मृति में लिखवा देगी-“शरद सुनेरी मार्ग।” लेकिन आपके आगमन ने मेरे सपने पर पानी फेर दिया। मेरी मूर्ति लगने की कल्पना मैंने नहीं की, क्यों कि यह काम कोई और “महिला” ‘करवा चुकी है।
बरसाती नाले और नदियाँ कैसे उफनते हैं, मुझे नहीं पता। किन्तु बरसाती गड्ढे कैसे उबाल मारते हैं यह मुझे तब आसानी से पता चल जाता था, जब बगल से कोई वाहन मेरे चरित्र पर कीचड़ उछालता हुआ कालिख थोप जाता था। आपने कीचड़ में कमल खिलते देखा है, पर कमल जैसे मुखड़े को कीचड़ होते नहीं देखा होगा। कैसे कमलप्रेमी हैं आप? क्या कमल का महत्व आपके किए मात्र चुनाव जीतने तक ही था क्या?
आप नहीं जानते, आपके आगमन से भरनेवालों सड़कों ये के गड्ढे कितने इंजीनियरों और अधिकारियों के बदले बनवा देंगे। आपका हर करीब को घर देने का सपना भले ही कभी पूरा न हो, लेकिन आप इसी तरह आते रहे तो मेरे शहर में अधिकारियों के बंगलों की संख्या ज़रूर बढ़ जाएगी।
मेरा इतना बड़ा शहर, जहाँ कुथ भी दर्शनीय नहीं। वहाँ ये गड्ढे ही तो उसकी आन-बान-शान-पहचान और जान थे। हमारा अभिमान थे। आपने हमारा वह सम्मान भी हमसे छीन लिया। कैसे प्रधानसेवक हैं आप? “मन की बात” कहते तो हैं पर मन की बात समझते तक नहीं? हमें गड्ढे भरी सड़क पर चलने की आदत हो गई थी। स्पीड ब्रेकरों की ज़रूरत ही नहीं पड़ती थी। क्या अब सपाट सड़कों पर दुर्घटनाएँ नहीं बढ़ जाएगी। बुरा न मानिएगा, पर आगे से इन ,सड़कों पर होने वाली दुर्घटनाओं की ज़िम्मेदारी आप पर आएगी।
फिर भी आप हमारे शहर में आ रहे हैं, चिलचिलाती हुई धूप में इसी सड़क के किनारे लगे हुए पेड़ की ओट से छिपकर, हम चीथड़े लपेटे हुए भारत को विकास’ के पथ पर अग्रसर होता देख लेंगे। शुभ स्वागतम् प्रधानमंत्री जी।
— शरद सुनेरी