गीत/नवगीत

श्याम तुम्हें कौन बुलाता

जो हम ना होते रंग श्वेत श्याम तुम्हे कौन बुलाता
ऐसा ही होता है प्रियतम रंग रंग का रिश्ता नाता ।।

ज्यों भोर अधूरी बिन रैना धवल काले बिन आधा
सुख आधा बिनु दुःख चाखे जय आधी बिन बाधा ।।

दो रंगों बिनु सूने नयना मूरत बिनु मंदिर लगे आधी ।
धरनि अधूरी बिनु अंबर दर्पण बिनु सूरति है आधी ।।

सम और विषम संग चलते नियम यह सृष्टि बनाती ।
देह अधूरी प्राण बिना लगूँ सोई तुम बिन मैं आधी ।।

रूप रंग तनमन फीका श्रृंगार संग अरुचि है जागे ।
दसों दिशा सम परिमाण आस निराश दिखे तागे ।।

यूँ मुझसे मत रूठो सांवल प्रीत में कर दी ठिठोली ।
लो लेलो मोरा उजल रंग अंग लग करके बरजोरी ।।

मुरली की धुन क्या लागे प्यारी स्वांस बिनु साधे ।।
तुम भी तो दिखते प्रिय आधे बिनु वाम लिए राधे ।।
प्रियंवदा अवस्थी©2015

प्रियंवदा अवस्थी

इलाहाबाद विश्वविद्यालय से साहित्य विषय में स्नातक, सामान्य गृहणी, निवास किदवई नगर कानपुर उत्तर प्रदेश ,पठन तथा लेखन में युवाकाल से ही रूचि , कई समाचार पत्र तथा पत्रिकाओं में प्रकाशित , श्रृंगार रस रुचिकर विधा ,तुकांत अतुकांत काव्य, गीत ग़ज़ल लेख कहानी लिखना शौक है। जीवन दर्शन तथा प्रकृति प्रिय विषय । स्वयं का काव्य संग्रह रत्नाकर प्रकाशन बेदौली इलाहाबाद से 2014 में प्रकाशित ।