गीतिका/ग़ज़ल

“मत करो”

उल्टी पुल्टी बात,,मत करो,

दिन रहने दो रात,,मत करो!

हम भारत के भारतवासी,

अलग हमारी जात,, मत करो!

ज़िंदा है पर दिखे नहीं,

मुर्दों सी जमात,, मत करो!

यकीं तौर हम सब झुलसेगें,

बारुद की बरसात ,, मत करो!

सीने पर होगा तो सह लेगें,

यूं पीठ पर घात,, मत करो

नशे में दूल्हे को रहने दो,

टुन्न सारी बारात ,,मत करो!

सारे कातिल यहीं तो है ‘जय’,

संग खूब में हाथ मत करो!

*जयकृष्ण चाँडक 'जय'

हरदा म. प्र. से