ब्लॉग/परिचर्चा

जन्म दिन –एक उपहार

आज 14 अप्रैल है । आजाद भारत के इतिहास में आज के दिन का विशेष महत्व है । हो भी क्यों नहीं ? स्वतंत्र भारत का संविधान लिखने का श्रेय जिस महामानव भारत रत्न डॉ. बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर को जाता है उनका जयंती समारोह पुरे भारत में हर्षोल्लास से मनाया जाता है । हम भी अपने देशवासियों की ख़ुशी से आनंदित हैं लेकिन आज हमारी ख़ुशी सभी देशवासियों से द्विगुणित है ।
और इसकी खास वजह भी है । वजह हैं आदरणीय भाईसाहब श्री गुरमेल सिंह भमरा जी  !
इस नाम से जय विजय व न भा टा के अपना ब्लॉग के पाठक भली भांति परिचित हैं ।

विदेश में रहकर भी अपनी मिटटी से जुड़े रहना कोई इनसे सीखे । लन्दन में रहते हुए भी भारत और भारतीयों के हर सुख दुःख से इनका गजब का लगाव है । यहाँ घटनेवाली हर छोटी बड़ी घटना पर इनकी पैनी नजर बनी रहती है । हर चीज जानने की जिज्ञासु वृत्ति इनकी बड़ी विशेषता है ।
श्रद्धेय बहनजी आदरणीया लीला तिवानी जी के हर लेख में उनकी शानदार प्रतिक्रिया स्वरुप उपस्थिति अपेक्षित होती है । उनकी शानदार प्रतिक्रियाएं बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देती हैं । और उनके इसी छिपी हुयी प्रतिभा को बहन लीला जी की पारखी नज़रों ने परख लिया और फिर शुरू हो गयी गुरमेल भाईसाहब जी की शानदार साहित्यिक यात्रा ।
उनके लेखनी की विलक्षणता विविधता और धाराप्रवाह यथार्थ लेखन का रसास्वादन हम सभी पाठक अपनी प्रिय पत्रिका जय विजय में उनके संस्मरण मेरी कहानी के रूप में कर चुके हैं । कुल मिलाकर 201 कड़ियों का उनका संस्मरण जय विजय पत्रिका की शोभा बढ़ा रहे हैं । इस संस्मरण की सभी कड़ियाँ बेमिसाल हैं । पाठकों को उनकी अगली कड़ी का बेसब्री से इंतजार रहता था । अब आदरणीया लीला बहनजी की सहृदयता से यह सभी कहानियां इ बुक के रूप में वेबसाइट पर उपलब्ध हैं ।
आज उन्हीं आदरणीय बहुमुखी प्रतिभा के धनी संघर्ष की अद्भुत क्षमता का प्रदर्शन करनेवाले जिंदादिल इंसान श्री गुरमेल भाई जी का चौहत्तरवां ( 74  th ) जन्मदिन है । इस शुभ अवसर पर हमारी ईश्वर से यही प्रार्थना है कि वह उन्हें वही पुरानी खुशियाँ और वही सेहत फिर से लौटा दे जब वो खुद अपने पैरों पर चल कर पूरी दुनिया घुम सकें और उसका सजीव चित्रण करके अपने पाठकों को भी पुरी दुनिया घुमा सकें ।
आदरणीय भाईसाहब को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं !!,!
लेकिन ठहरिये ! अभी आज के दिन की ख़ुशी ईतने में ही पूरी नहीं होती । अभी तो एक और बहुत बड़ी ख़ुशी हमारा इंतजार कर रही है । लो आप को बता ही देते हैं ।  आज ही के दिन यानी 14 अप्रैल 1967 को हमारे आदरणीय भाईसाहब गुरमेल जी अपने जीवन सफ़र में आदरणीया कुलवंत कौर जी के साथ दाम्पत्य सूत्र बंधन में बंधे थे । आज उनके शादी की  अर्थात दाम्पत्य जीवन के स्वर्णिम युग की पचासवीं वर्षगाँठ है । ईन पचास वर्षों में कुलवंत जी ने हर पल सुख दुःख और हर स्थिति में मुस्कुराते हुए गुरमेल भाईसाहब जी का बखूबी साथ निभाया है और उनको कभी किसी चीज की कमी महसूस नहीं होने दी ।
आज जब भाईसाहब अपनी बीमारी से बहादुरी जूझ रहे हैं आदरनीया कुलवंत जी सही मायने में उनका हमसाया बनकर एक सच्चा हमसफ़र बनने का अपना दायित्व बखूबी निभा रही हैं । निर्दयी बीमारी ने जहाँ उनको चलने बोलने और घुमने फिरने से महरूम कर दिया है कुलवंत जी उनकी हर जबान समझती हैं । उन्हें हर बात समझाती हैं । घुमने फिरने के शौक़ीन भाईसाहब को अपनी आँखों देखि बताकर उन्हें घर में बैठे बैठे ही घूम आने का अहसास करवाती हैं ।  आज यदि कहा जाए कुलवंत जी उनकी जुबान उनकी आँखें उनके पैर बन चुकी हैं और उनसे ही उनमें जोश साहस और जिन्दादिली का जज्बा कायम है जो दूसरों के लिए एक आदर्श और अनुकरणीय तथा प्रेरणादायक है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी । ऐसी एक दुसरे को समर्पित इस आदर्श दंपत्ति को हमारी व जय विजय के तमाम पाठकों की तरफ से उनके सुखमय दाम्पत्य जीवन के पचास साल पुरे करने के उपलक्ष्य में हम सभी की तरफ से हार्दिक शुभकामनाएं ।
इसी के साथ हम ईश्वर से प्रार्थना करेंगे कि वह शीघ्र ही इन्हें सभी बिमारियों से मुक्ति दिलाएं । हम उम्मीद करते हैं अगला वर्षगाँठ दोनों हमसफ़र मिलकर हंसी ख़ुशी बीमारी से निजात पाकर मनाएंगे । शीघ्र ही भाईसाहब पियानो पर अपनी मनपसंद धुनें बजा पायें और अपनी मनपसंद जगहों की सैर कर सकें इससे अच्छा और क्या होगा ?
इससे हमारे जय विजय के पाठक भी उनके नायाब संस्मरण पढ़कर घर बैठे दुनिया घुमने का मजा ले पाएंगे ।
मैं भी कभी कभार न भा टा में प्रतिक्रियाएं लिख देता था । बाद में अपना ब्लॉग में आदरणीया बहनजी का ब्लॉग पढ़कर उसमें प्रतिक्रियाएं लिखने लगा । बहनजी का स्नेह भरा जवाब जहाँ मन को हार्दिक संतुष्टि प्रदान करता वहीँ भाईसाहब कोई प्रतिक्रिया पसंद आने पर उसकी तारीफ़ करना भी नहीं भूलते और मुझे गर्व है कि उन्होंने कई बार मेरी लिखी प्रतिक्रियाओं की मुक्त कंठ से तारीफ़ की है । इतना ही नहीं बहनजी की प्रेरणा से  हौसला बढ़ाये जाने पर जब मैंने जय विजय में कुछ टुटा फुटा लिखना प्रारंभ किया अपनी शानदार प्रतिक्रियाओं द्वारा मेरा उत्साहवर्धन करने का हरसंभव प्रयास किया । भाईसाहब की प्रतिक्रियाएं भी अपने आप में अनूठी होती हैं । स्वयं के सार्थक विचारों व अनुभवों से ओतप्रोत जो निस्संदेह कुछ न कुछ नयी कहानी बयान करती हैं । जब किसी लेख में भाईसाहब या आदरणीया बहनजी किसी वजह से प्रतिक्रिया नहीं लिख पाते मन में हमेशा कोई कमी सी महसूस होती है । मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि वो ऐसे सहृदय बहुमुखी प्रतिभा के धनी कोमल ह्रदय अदम्य जीवट व साहस के प्रतिक आदरणीय भाईसाहब श्री गुरमेल जी को जीवन की सभी खुशियों से नवाजते हुए उन्हें बेहतर सेहत का आशीर्वाद दें ताकि वो हम जैसे नए लिखनेवालों को उत्साहित करते हुए उन्हें कुछ लिखने को प्रेरित करते रहें । समय समय पर उनकी शानदार रचनाओं से भी हम बहुत कुछ सीखते रहते हैं ।
एक बार फिर आदरणीय भाईसाहब को उनके जन्मदिवस की चौहत्तरवीं वर्ष गांठ के शुभ अवसर पर ढेर सारी शुभकामनाएं !
इसी के साथ आदरणीया कुलवंत जी व आदरणीय भाईसाहब गुरमेल जी को पुनः एक बार दाम्पत्य सूत्र बंधन ( wedding anniversary ) की पचासवीं  वर्षगाँठ मुबारक हो व समस्त पाठकों लेखकों व हितचिंतकों द्वारा हार्दिक शुभकामनाएं ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।