मुझको बड़ा सुहाना लगता,
कोई भी हो मेला,
मेले में हो सजे-सजाए,
लोगों का बस रेला.
कुल्चे-छोले-रबड़ी-कुल्फी,
खेल-खिलौने न्यारे,
झूले-हाथी-ऊंट सवारी,
मेले के खेल निराले.
लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं।
लीला तिवानी
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