41.व्यंजन-गीत
(बाल काव्य सुमन संग्रह से)
‘क’ कबूतर पक्षी प्यारा,
गुटरु-गूं से लगता न्यारा.
‘ख’ खरगोश सफेद रुई-सा,
छूने से भागे छुईमुई-सा.
‘ग’ गमले में पौधे उगते,
सुंदर गमले मन को हरते.
‘घ’ घड़ी है समय बताती,
ठीक समय सब काम कराती.
‘ङ’ तो बेचारा ही रहता,
अङ्गारे की आग को सहता.
‘च’ चरखा चलता ही रहता,
कपड़ा बुनता, कभी न थकता.
‘छ’ छतरी वर्षा से बचाए,
धूप में हमको छांव दिलाए.
‘ज’ जग है आतिथ्य कराती,
लस्सी-पानी-जूस पिलाती.
‘झ’ झंडा ऊंचा लहराता,
अपने देश का मान बढ़ाता.
‘ञ’ से अक्षर कोई न बनता,
मञ्जन बन दांतों में लगता,
‘ट’ से टमाटर सूप बनाए,
सब्ज़ी-सलाद की रंगत बढ़ाए.
‘ठ’ से ठठेरा ठक-ठक करता,
बर्तन बना व्यापार है करता.
‘ड’ डमरू डम-डमकर बजता,
शंकर जी के हाथ में सजता.
‘ढ’ ढकना चीज़ों को ढकता,
कीट-धूल से रक्षा करता.
‘ण’ से कुछ न बने तो क्या है,
कण-कण में यह ही रहता है.
‘त’ तरबूज़ा फल है रसाल,
बाहर हरा, भीतर से लाल.
‘थ’ थन से हमें दूध है मिलता,
दही-मिठाई-मावा बनता.
‘द’ दवात में स्याही रखते,
इसमें कलम डुबोकर लिखते.
‘ध’ धनुष हथियार महान,
काम करे न जताए शान.
‘न’ नल से पानी मिलता है,
पानी से जीवन चलता है.
‘प’ पतंग फ़र-फ़र उड़ती है,
डोर जिधर चाहे, मुड़ती है.
‘फ’ से फल ताकत देते हैं,
कई तरह के ये होते हैं.
‘ब’ से बकरी भोलीभाली,
दूध है हल्का, दो थन वाली.
‘भ’ भालू है काला-मोटा,
खेल दिखाता खाकर सोटा.
‘म’ मछली है जल की रानी,
लेकिन पी नहीं पाती वह पानी.
‘य’ से यज्ञ पवित्र बनाए,
‘र’ से रस्सी है कमाल दिखाती,
खुद बंधकर औरों को बंधाती.
‘ल’ से लटू घूमे फर-फर,
बच्चों को दे हर्ष निरंतर.
‘व’ वन दे लकड़ी-फल-मेवा,
अन्न-फूल दे, ले थोड़ी सेवा.
‘श’ शलगम से सब्ज़ी बनती,
ताकत से भरपूर है रहती.
‘ष’ षट्कोण छ कोनों वाला,
लगता है यह सबसे निराला.
‘स’ सेब को जो भी खाता,
आनंद और शक्ति है पाता.
‘ह’ से हरिण सुंदर-फुर्तीला,
जंगल का है पशु सजीला.
‘क्ष’ से क्षत्रिय होता वीर,
हाथ में भाला, मन से धीर.
‘त्र’ त्रिशूल से करो शिकार,
संत की रक्षा, दुष्ट-संहार.
‘ज्ञ’ से ज्ञानी ज्ञान बढ़ाए,
खुद सीखें, औरों को सिखाएं.