आने वाला कल
विश्व में हर जगह फैला प्रदूषण है ,
महामारी फैलती रोगो की भरमार है ।
नदियाँ सीमायें लाँघ बस्तियाँ बहा रही हैं ,
अपनी करनी से परेशान संसार है ।
प्रकृति से छेड़छाड़ करना बड़ा महँगा पड़ा
अब तो विज्ञान की भी गलती नही दाल है ।
ओजोन पर्त छिद्रित हुई, छाईं ग्रीन हाउस गैसें,
भूस्खलन हो,बर्फ गले ,जीना मुहाल है ।
हमने शस्य श्यामला को स्वार्थ हित अपने,
मात्र कूड़े का एक डिब्बा बना डाला ।
चमकते हम रहें, लेकिन काम से अपने ,
कर दिया पार्यावरण को प्रदूषित काला ।
काट कर जंगल ,धरा की खोद कर छाती,
कंकरीटों के हमने जाल बिछाये ।
जब जब अपनी दुर्दशा पर भूमि है रोती,
तब तब उसके अश्रुजल से बाढ़ आ जाती ।
अब वह दिन नही है दूर ,
जब महाप्रलय आयेगा।
इस महाप्रलयी दानव को ,
दर्पण दिखायेगा ।
कहेगा तू कर मेरा अब सामना ,
देखता हूँ तुझमे कितनी जान है ।
सामने जो खड़ा है,दुश्मन तेरा,
तेरे दुष्कर्मों का फल है,
तेरी ही संतान है ।
लायेगा लड़ने को वो ,गैसे विषैली,
सेनापति का प्रदूषण नाम होगा ।
घातक विकिरणों की सेना साथ होगी,
नेत्र ,श्वाँस,त्वचा रोग देना उसका काम होगा ।
कैंसर सा अमोघ हथियार होगा ।
हार मानना तेरा बेकार होगा ।
क्योंकि उसके अंदर भावनाएँ नही होंगी,
न किसी के प्रति दया का भाव होगा ।
एक विध्वंसक का वो विध्वंस करके,
मानव सभ्यता को वो मिटा जायेगा ।
लाखों जातियाँ जो निगल गया
जो अपने क्रियाकलापों से
उस मानव को उसके पापों का ,
परिणाम ही खा जायेगा ।
इससे पहले कि वो दिन आये,
चेतों !
नही तो इसका बहुत बुरा परिणाम होगा ।
अभी तो प्रकृति एक नमूना दिखा रही है,
आगे भगवान जाने फिर क्या अंजाम होगा ।
———————— डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी