मेरे ख्यालों के हमसफ़र
तुम्हें सोचती हूँ तो
गुम हो जाती हूं ,
तेरी परछाई सी बन जाती हूं
गजलें लिखती हूँ
गीत गुनगुनाती हूँ
शब्दों से अठखेलियां कर, तुझे रिझाती हूँ
तेरे एहसासों की खुशबू से हर पल महकाती हूँ
कितना लड़ती झगड़ती हूँ
फिर मैं तुमसे बेहद प्यार करती हूँ
नदी किनारे पाँव पानी में डाले
हाथों में हाथ लिये मन डूबता है
और
तुम छपाक से पानी उछाल देते हो
चलो वापस चलो
ख्यालों से निकल हकीकत में आओ
प्यार मोहताज नहीं साथ का
बस गुरुर है दो दिलों का !!
— डॉली अग्रवाल