“शून्य से जीवन शुरू”
शून्य में दुनिया समायी, शून्य से संसार है।
शून्य ही विज्ञान का अभिप्राण है आधार है।।
शून्य से ही नाद है और शून्य से ही शब्द हैं।
शून्य के बिन, प्राण-मन, सम्वेदना निःशब्द हैं।।
शून्य में हैं कल्पनाएँ, शून्य मे है जिन्दगी।
शून्य में है भावनाएँ, शून्य में है बन्दगी।।
शून्य ही है जख़्म, उनका शून्य ही मरहम बना।
शून्य के बिन गणित का, सिद्धान्त तो है अनमना।।
शून्य में ही चैन हैं, और शून्य मे ही मौन हैं।
शून्य जैसे सार्थक को, सब समझते गौण हैं।।
शून्य से गणनाएँ होती, शून्य ही आकाश हैं।
ग्रह-उपग्रह, चाँद-तारे, शून्य के ही पास हैं।।
शून्य से जीवन शुरू है, शून्य पर ही अन्त है।
आदि से ही शून्य का महिमा अपार-अनन्त है।।
शून्य के बिन साधना का भी अधूरा ज्ञान है।
शून्य से ही तो हमारी विश्व में पहचान है।।
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(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)