गज़ल
कभी फुर्सत हो तो सुनना छोटी सी कहानी है,
अश्कों से लिखी है और निगाहों से सुनानी है
गम क्या है हमें मालूम ही ना था कभी पहले,
ये आँसू और ये आहें मुहब्बत की निशानी है
मज़ा जलने में क्या है ये ज़रा परवानों से पूछो,
कभी ना आग से गुज़री वो बेमकसद जवानी है
मिलाया किसने आब-ए-इश्क में ये ज़हर धोखे का,
जो पूछा तो वो कहते हैं रवायत ये पुरानी है
बस उसके बाद तो जीने की रस्में ही अदा की हैं,
तुम्हारे साथ जो बीती वही बस जिंदगानी है
जुड़ा है नाम तेरा इस तरह कुछ नाम से मेरे,
मेरी हर नज़्म तेरे ज़िक्र से पहले बेमानी है
— भरत मल्होत्रा