“फूलों हो या तुम”
फूलों पर सो रही हूँ
तुम्हारा सीना समझकर
फूलों की डाली पर झूल रही
तुम्हारा कंधा समझकर
फूलों को सहला रही
तुम्हारे बाल समझ कर
फूलों को चूम रही
तुम्हारे लब समझकर
फूलों को लिपट रही
तुम्हारी बाहें समझकर
फूलों को प्यार कर रही
तुम समझकर
पर जैसे ही काँटे चुभते
हाथों को
तो मुझे भान होता
ये तुम नहीं !
एक मुझे तुमसे
दुजा इन फूलों से इश्क़ है
इसलिए जब भी तुम्हारी याद सताती है
मैं इन फूलों को प्यार करती हूँ!
~ कुमारी अर्चना