एक गीत 2122,2122,212
बिन तुम्हारे जिंदगी परिहास है।
शेष अब तो आस ही बस आस है।
भेजते थे तुम कभी जो खत हमें
छल रही है आज वो ही लत हमें।
अब नही बाकी कोई उल्लास है
शेष अब तो आस ही बस आस है….(१)
आँसुओं से नम हुई मन वादियाँ
बढ़ रहीं हैं बीच अपने दूरियाँ
दग्ध मन में जल रहा अहसास है
शेष अब तो आस ही बस आस है….(२)
सोचती हूँ हौंसले कायम रखूँ।
याद तेरी दिल में मैं हरदम रखूँ
पतझड़ों के बाद फिर मधुमास है
शेष अब तो आस ही बस आस है….(३)
……अनहद गुंजन गीतिका