बनाकर ज़िन्दगी अपनी बहुत दुश्वार बैठा है
बनाकर ज़िन्दगी अपनी बहुत दुश्वार बैठा है
जिसे देखो वही इस प्यार में बीमार बैठा है
मुहब्बत के अदब के वास्ते घातक है वो इंसान
लिए दिल में जो नफ़रत का कोई हथियार बैठा है
भले कोई करे इनकार मेरी बात से लेकिन
हरिक इंसान के भीतर छुपा मक्कार बैठा है
किया इज़हार मैंने बारहा अपनी मुहब्बत का
ज़माने से लबों उसके मगर इनकार बैठा है
सताएगा मुझे क्या खौफ़ इस कानून का यारो
पिया बनकर मेरा थाने में थानेदार बैठा है
जो होना है वो हो जाये नहीं कुछ फ़िक्र अब दिल में
ये ‘माही’ मुश्किलों को बेझिझक ललकार बैठा है
उसे मिलती नहीं मंज़िल किसी भी हाल में ‘माही’
सफ़र करने से पहले ही जो हिम्मत हार बैठा है
नहीं है फ़र्क़ उसमें और मुर्दा में कोई ‘माही’
ज़मीर अपना हमेशा के लिए जो मार बैठा है
माही
17 अप्रैल, 2017