// मैं भी…//
मैं मनुष्य हूँ
मेरा भी जीवन है
मानवता का है विचार मेरा
अच्छे समाज की परिकल्पना में
आगे बढ़ना मैं अपना धर्म मानकर
कदम-कदम बढ़ाता हूँ
साहित्य के साथ नये विचारों को लेकर
अनंत आकाश में मैं चलता हूँ
मेरे अंदर की सुलगाती आग
वह धर्म की दिविटी है
विशाल भव सागर में
मैं भी एक नाविक हूँ
हंसते-रोते जीवन में
मेरी हर पंक्ति का
अपना अलग अर्थ ढूँढ़ने का
प्रयास मैं करता हूँ ।