एक जवान का दर्द
इस देश में जो हो रहा कैसे सुनाएँ हम
जो जख्म हमको मिल रहे किसको दिखाएँ हम
साथी हमारे सह रहे पथरों की मार को
लाचार इतने हो गए कैसे बताएं हम
जो जख्म हमको…..
हथियार छीनकर हमें लड़ने को कहते हैं
कागज़ की नाव कश्तियां कैसे चलाये हम
जो जख्म….
कायर के जैसे जी रहे है हम सभी यहाँ
खुद्दारी की मशाल को कैसे जलाएं हम
जो जख्म…
हम वीर सिपाही नहीं मज़दूर बंधुआ
क्या गलतियां हमारी यूँ थप्पड़ को खाएं हम
जो जख्म….
साहस हमारा टूटता संयम भी छूटता
मज़बूर मत करो कि खुद को भूल जाएं हम
जो जख्म….
छुट्ी नहीं भत्ता नहीं वेतन नहीं देना
चाहत ये जान देश की खातिर लगाएं हम
जो जख्म…
चुपचाप जुल्म सहने को मज़बूर वर्दियां
माँ भारती की लाज को कैसे बचाएं हम
जो जख्म….
बुझने न दो जो सीने में ये आग लगी है
माँ भारती के दर्द को कैसे भुलाएँ हम||
— खुशबू जैन