लघु कथा : पहलू
दो प्रेमी युगल एक पत्रकार युवती,दूसरा फोटोग्राफर युवक सर्द रात के नौ बजे किसी मंदिर की घंटी से खनक रहे थे |
‘श–श–चुप करो–और जाओ हम कल मिलते है |’
युवक ने उसकी बात अनसुनी कर चलते चलते उसका रास्ता रोक लेता है – ‘मज़ाक नहीं ,सच– बताओ न – हम कब शादी कर रहे है|’
युवती शायद रोजाना ही उसका प्रणय निवेदन सुनती थी |इस कारण बड़ी सहजता से उसे मना कर आगे बढ़ जाती है |
‘ये क्या – सब ठीक रहता है ,पर बस शादी की बात पर रुक जाती हो क्यों?’
वो जवाब में कुछ कहना चाहती थी पर ,गहरी सांस छोड़ कुछ और ही कहती है– ‘मुझे आज रात ये रिपोर्ट तैयार करनी जरूरी है – मैं इन बड़े लोगो की एड्स पर की दोहरी सोच का सच सामने लाना चाहती हूँ कि इन लोगों के सिर्फ विचार ही अच्छे है पर हकीकत इससेकुछ अलग ही है -|’
‘क्या रिपोर्ट – किसी मेजर की जासूसी कर की वो अपनी एच आई वी पॉज़िटिव बहू के साथ हकीकत में क्या व्यवहार करता है , उसके साथ भेद भाव करता है – यार सब जानते है कि सुबह जो हमने एड्स दिवस पर बड़ा अच्छा भाषण सुना था ,जिस पर उपस्थित भीड़ने बड़ी गर्म जोशी से ताली भी बजाई थी ,क्या तुम समझती हो हकीकत में वे सब एड्स रोगी के बारे में ऐसा अच्छा ही सोचते है ,सच जानने के बाद भी वे एड्स रोगी संग खाना तो बैठना भी नहीं चाहेंगे – यार सब हमारी तरह नई सोच वाले नहीं है|’ वो कहता रहा -‘ उस मेजर का बेटा अपनी पत्नी के कारण ही एच आई वी का मरीज हुआ ,जिससे प्रभावित हो कर उसने आत्महत्या भी कर ली सब यही जानते है – अब और क्या सच जानना है तुम्हें !
‘पर ये सच नहीं है |’
उसकी व्यग्रता उस युवक को चकित कर गई |कुछ पल की शांति के बाद उस युवती ने कहा -‘ वो मेरी सगी बहन है |’
फिर उस पल युवती ने सुना भी नहीं पर युवक ने कहा की उसका कोई जरूरी फोन आ गया है और वो वहाँ से तुरंत बिना पलटे चला गया |
— अर्चना ठाकुर