कविता

नृत्य का आनन्द सागर

नृत्य का आनन्द सागर, ईश्वर की है साधना,
क्या रखा है मन्दिरों में, नृत्य से आराधना।
कुछ रहे वंचित यहाँ, मूक बधिर बन कर जिये,
हर पल उन्हें खुशियाँ मिले, प्रभु से यही प्रार्थना।
कुछ दृष्टि बाधित भी यहाँ, बन्द नेत्रों से निहारते,
दिव्य चक्षु उनको मिलें, अपनी बस यही कामना।
हो कोई दिव्यांग जन, स्वाभिमान उनका भी बढे,
दया, करूणा, उपकार न हो, सहयोग की हो भावना।
अ कीर्तिवर्धन