कविता

फूट

फूट कर ही बीज से, वृक्ष उपजता है,
फूट कर ही पहाड से, झरना निकलता है।
फूट पडता दर्द का सैलाब दिल में जब कहीं,
शब्द सृजन कर कवि, वाल्मिकी बनता है।
माना कि फूट होती नही अच्छी परिवार में,
फूट से ही अकबर को, जयचंद मिलता  है।
फूट जाता जब कहीं, पीपल मकां की ओट में,
कौन देता जल वहाँ, प्रभु कृपा फल दिखता है।
अ कीर्तिवर्धन